जब आप ट्रेन पर सफर करते हो तब आप पटरी पर बीछी हुई इन पत्थरो को देखते होंगे जिसे हम सामान्य भाषा में गिट्टी भी कहते है।क्या आप ने कभी ये सोचा है की ये पत्थर पटरी के आस पास क्यों बिछें होते है? तो आइये जानते है इसके बारे मे।
जो पटरी हम देखते है वो इतनी सिंपल नहीं होती उस पटरी के निचे concrete से बने लम्बे लम्बे प्लेट होते है।जो हम असल में देखते है इन्हे स्लीपर कहते है स्लीपर के निचे एक ग्रे पार्ट दिखता है ये है वो पत्थर जो की बिछा हुआ रहता है और इन सारे पत्थरो को बैलेंसड कहते है इनके निचे दो और परत होता है इसके बाद नीचे में जो परत दिखाई देता है वो नेचुरल ज़मीन होती है।हम में से ज़्यादातर लोगो को लगता है की सिंपल जमीन के ऊपर रेल की पटरी बिछी होती है पर ये सच नहीं है।अगर आप ट्रैक को ध्यान से देखते हो तो आप पाएंगे की ये थोड़ी उचाई पर बनाई जाती है। उसके नीचे बहुत सारे सेटिंग्स होते है, ये जो स्लिपर होते है जिसके ऊपर पटरी बिछी होती है ये भी बहुत जरुरी होती है। ये concrete से बने स्लिपरस पटरी के बीच के गेप को बनाये रखती है और इन concrete से बने स्लिपर को एक जगह पर ये पत्थर रखती है और यही इन पत्थरो का काम है।
मतलब ये पत्थर सीमेंट के बने इन स्लिपर को एक जगह रखती है।और ये स्लिपर लोहे के बने पटरी को एक जगह होल्ड करती है इसका मतलब यह है की मेंन काम यह पर पत्थर ही कर रहा है।एक ट्रेन का वजन लगभग 10 लाख किलोग्राम होता है तो आप सोच ही सकते है की एक लोहे से बना पतला सा ट्रैक इसे नहीं संभाल पायेगा।एक ट्रेन को संभालने में इस लोहे का और concrete से बने स्लिपर का और इन पत्थरों का इन सबका मिलकर योगदान होता है पर देखा जाय तो सबसे ज़्यादा लोड इन पत्थरों पर होता है ये पत्थर ही होते है जो ट्रैक को एक जगह मजबूत से रखती है।
रेल के पटरी के नीचे ऐसे वैसे गिट्टियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है,अगर इन गिट्टियों के बदले गोल गोल सॉफ्ट पत्थरो का इस्तेमाल किया जाता तो वो एक दूसरे से टकरा कर गोल गोल घूमने लगाती और पटरी एक जगह पर नहीं रहा पाती ट्रैन के वजन के चलते पटरी भी हिलने लगाती इसलिए स्पेशली नुकले और रफ पत्थरो का इस्तेमाल किया जाता है जिसके कोने गोल न हो जिसे की गिट्टी कहते है ताकि जब भारी ट्रैन उस पर से पार हो तो ये नुकीले पत्थर आपस में अपना अकड़ बनाये रखे जो की गोल पत्थर नहीं कर सकते है और इस अकड़ के चलते चलती हुई ट्रैन जितनी भी भारी हो ये लोहे का बना हुआ पटरी और ये स्लीपर एक जगह पर फिक्स्ड रहता है।
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इस पत्थर का एक और काम है जैसे की आप जानते होंगे की अगर पटरी पर गिट्टी ना हो तो उस पटरी में घास उग आएंगे और पटरी घास और पेड़ पौधो से भर जायेंगी। ये पत्थर इन्हे भी उगने से रोकते है और घास को जमने से रोकने के साथ साथ पटरी के आस पास पानी के जमाव को भी रोकते है।
अब आप के मन में एक और बात आ रहा होगा मेट्रो ट्रैन जो होते है उसके ट्रैक में तो इन पत्थरो का इस्तेमाल नहीं होता तो बात ये है जो चीज़े हमने आप को बताई है वो मेट्रो ट्रैन में फॉलो नहीं होता है। मेट्रो ट्रैन के ट्रैक में डायरेक्ट स्लीपर को रखने बाद ट्रैक को रख दिया जाता है वो भी बिना किसी गिट्टी के। ज्यादातर मेट्रो ट्रैनस अंडरग्राउंड या ब्रिज पर बने होते है इसलिए पत्थरों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है क्योकि मेट्रो का ये ट्रैक मिट्टी के जमीन पर नहीं बना होता है इसलिए यह ना तो घास उगने का प्रॉब्लम होगा और न ही पानी जमने का प्रॉब्लम होगा। और सामन्यतः मेट्रो ट्रैन का वजन नार्मल ट्रेन से कम होता है इसलिए मेट्रो ट्रैन के ट्रैक पर इन पत्थरो की जरूरत नहीं पड़ती है।