भारत में ओलंपिक क्यों नहीं होते ? आज तक भारत ने ओलंपिक होस्ट करने में इतना इंटररेस्ट क्यों नहीं दिखया है?
भारत के ओलंपिक होस्ट न करने के पीछे तीन प्रमुख कारण है।पहला कारण इकोनॉमिक्स, दूसरा सोशल और तीसरा ब्रैंडिंग है।
ओलंपिक गेम्स को होस्ट करना कोई सस्ती चीज़ नहीं है और लास्ट ओलपिक गेम्स को होस्ट करने में 14.4 बिलियन डॉलर का खर्चा आया था और आज तक पूरी दुनिया में साल 1995 के बाद कोई ऐसे ओलंपिक गेम्स नहीं रहे जो ओवर बजट नहीं हुए है।14.4 बिलयन डॉलर कोई छोटी अमाउंट नहीं है हमारे देश की गोवा जैसे स्टेट की इकॉनमी का यह 1.5 गुना होता है और आप जानते है की गोवा कोई गरीब या पिछड़ा हुआ स्टेट नहीं है। ओलंपिक के दोराना ओलंपिक विलेज मीडिया हाउस, ट्रान्सपोटेशन और 35 अलग अलग मेन्यू की जरूरत पड़ती है जो बनाने में सस्ती नहीं होती है।लेकिन इंडिया जैसी ट्रिलियन डालर इकोनॉमी वाले देश को 15 से 20 बिलियन डॉलर को एक इवेंट पर खर्च करने के लिए इतनी बड़ी बात नहीं होनी चाहिए और ये बात सच भी है की 15 बिलियन डॉलर ऐसी अमाउंट नहीं है जो इंडिया खर्च नहीं कर सकता।लेकिन फिर भी ओलंपिक पर इतनी बड़ी राशि लगने के बाद देश को कुछ भी रिटर्न नहीं मिलता है। एक ज़माने में ओलंपिक होस्ट करने वाली सिटिस अरबो की कीमत से पैसे कमाया करते थे टीवी राइट्स के जरिये यानि ओलंपिक जैसे गेम जो पूरी दुनिया में अलग अलग चैनलों पर टेलीकास्ट किये जाते और हर दिन अरबो लोग ओलंपिक को देखते है उनकी टीवी राइटस एडवरटाइजिंग और मिडिया राइट्स के जरिये अरबो रुपये की कमाई सिटिस करते थे।लेकिन साल दर साल इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी टीवी राइट्स पर अपना कमीशन बढ़ती जा रही है जिसके कारण सिटिस के लिए कुछ नहीं बचता है। छह ओलंपिक गेम्स पहले इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी पुरे मिडिया राइट्स रेवन्यू का 4 % लेती थी लेकिन 2016 रियो ओलंपिक में यही 4% , 70% तक आगे आ गया इसी करना मीडिया राइट्स जरिये सिटिस की कमाई बंद हो गया जो इनका मेन इन्कम सोर्स था।
ओलंपिक वैसे एक से डेढ़ महीने से ज्यादा चलता नहीं है और एक बार जब ओलंपिक ख़त्म हो जाये तब इन सारे वैन्यु की मेन्टेशन के लिए किसी भी सिटी को औसतन 30 मिलियन डॉलर प्रति माहिने का खर्चा आता है और ज्यादातर इन वैन्यु का न उपयोग हो पाता है और मेंटनेंस के लिए ज्यादा पैसे लग जाते है और इसके अलावा दोस्तों किसी भी ओलंपिक विलेज किसी भी सिटी के प्राइम एरिया के आस पास बनाया जाता है या फिर सिटी के बहुत करीब बनाया जाता है। कोई भी ओलंपिक विलेज किसी सिटी से ज्यादा दूर नहीं बनाया जा सकता है क्योकि की प्रमुख शहर से कनेक्टिव होना बहुत जरुरी होता है।एयरपोर्ट और ट्रैन जैसी सुविधा ओलंपिक विलेज से ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए इन सब को बनाने के लिए के प्राइम सिटी एरिया को खाली करवाना पड़ता है।ओलंपिक के लिए रियो ने जहा अपने स्लैम एरिया को खाली करवाया वही लंदन में अपने इण्डस्टिरियल एरिया को खाली करवाया था और इसी तरीके से अलग अलग सिटी के लोकल लोगो को भागने की जरूरत पड़ती है ओलंपिक विलेज को बनने के लिए। और एक बार जब ओलंपिक गेम ख़त्म हो जाते है तो इन एरियस की प्रॉपर्टी वैल्यूज बहुत नीचे गिर जाती है जिसका लॉन्ग टर्म में बहुत बूरा असर होता है किसी भी सिटी पर।
पिछले कुछ सालो में हमने बहुत सारे उदाहरण देखे है जहा पर सिटिस को ओलपिक गेम्स होस्ट करने के बाद उन शहरो को वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ा और सिटी 10 से 15 साल तक जूझते रहे है। ऐसा कहा जाता की ग्रीस के इकोनॉमिक पतन के पीछे का कारण ओलंपिक गेम्स से ही स्टार्ट हुआ था। जिसके कारण पुरे देश की इकोनामी कोलैप्स को गई। इसी करना सिर्फ भारत ही ऐसा देश नहीं है जो ओलंपिक होस्ट करने में इंटरेस्टेड नहीं है। दुनिया में कोई भी सिटी या देश आज ओलंपिक होस्ट करने में इंटरेस्टेड नहीं है साल 2004 के ओलपिक्स गेम के लिए 12 सिटिस ने इंटेरस्ट्स दिखया था की हम ओलंपिक होस्ट करना चाहते है लेकिन 2024 के लिए सिर्फ दो सिटिस है।
भारत के ओलंपिक होस्ट न करने के पीछे दूसरा फैक्टर सोशल इकोनॉमिक्स होता है।ओलपिक्स विलेज बनाने के कारण पहले के जामने में कोई भी विरोध नहीं होता था लेकिन आज की दुनिया में एन्वॉयरमेंट कंसल्ट और लोकल पोलिटिकल कंसल्ट बहुत बढ़ गए है। Pyeongchang ओलपिक्स के लिए पहाड़ो को हटाया गया था लन्दन ओलंपिक के लिए रेक्लिन मिशन किया गया था और इसी तरीके की बड़ी बड़ी चीजे जिसके करना पर्यावरण पर बहुत बुरा असर हो सकता है और इसका कोई पॉजिटिव इनपैक्ट दुनिया पर नहीं पड़ता है और लॉन्ग टर्म में नुकसान ओलंपिक होस्ट करने वाले देश को ही हुआ है।
और लास्ट फैक्टर की बात करे की क्यों भारत ओलंपिक होस्ट नहीं करना चाहता तो वो है ब्रांडिंग एक ज़माने की बात करे 1990 से 2000 तक टीवी ही सबसे बड़ा माध्यम था अपने देश का नाम बाहरी देशो तक पहुंचने के लिए। इतने बड़े पैमाने पर किसी देश का नाम अगर बाहर जाता है तो सिर्फ देश की इमेज वह का टूरिज़म और लोगो का माइंडसेट किस तरीके का है उस देश के लिए वो चेंज करने के लिए देश को बड़ी मदद मिलती थी और ये एक बड़ा फैक्टर हुआ करता था ओलंपिक को होस्ट करने के लिए लेकिन आज के ज़माने में जहा सोशल नेटवर्क,स्ट्रीमिंग सर्विसेज और बाकि मिडिया भी इंटरनेशनल हो चुकी है वह पर ओलंपिक जैसे इवेंट की कोई जरूरत नहीं पड़ती देश का नाम बाहर तक पहुचंने के लिए। ब्रांडिंग भी कोई बहुत बड़ी पॉजिटिव स्केल पर नहीं हो रही है ,आज पूरी दुनिया नेगेटिव न्यूज़ के भरोसे चल रही है पिछले 2 से 3ओलंपिक गेम्स के बारे में आप आर्टिकल सर्च करोगे तो आप को नेगिटिव न्यूज़ ही देखने को मिलेगी।
भारत जैसे देश जिसकी इन्टर्नल स्थिति कैसी है ये सब हम जानते है और हमें ये भी पता है की इटरनेशनल मिडिया हमें किस तरह से देखते है और भारत देश के पॉजिटिव साइड पर कभी फोकस नहीं कर पाते। तो ओलंपिक जैसा गेम जब भारत में होस्ट होगा तो इसका बहुत बड़ा चांस है नेगिटिव ऑउटलुक से भारत को दिखाया जाएगा कोई भी छोटी दिक्कत जो ओलंपिक जैसे इवेंट के सामने आएगी उसे बढ़ा चढ़ा कर मेजर हेडलाइन के रूप में दिखाया जायेगा जिससे देश की ब्रांडिंग नेगेटिव होगी।
ये तीन ऐसे प्रमुख फैक्टर है जिसके कारण भारत ही नहीं आज कोई भी देश ओलंपिक होस्ट नहीं करना चाहता है। इसके अलावा एक कारण ये भी है की पूरी दुनिया में इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी से लोगो का भरोसा धीरे धीरे उठाते जा रहा है पिछले कुछ सालो में इन पर भ्रष्टाचार के आरोप इन पर लगाए गए है। जिसके करना कोई भी देश आज ओलपिंक होस्ट नहीं करना चाहता है।
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